चंद्रयान-2 मिशन भले ही अपने अंतिम पड़ाव में वांछित परिणाम हासिल करने में सफल नहीं हुआ हो लेकिन इससे संपूर्ण मिशन की उपलब्धियां कम नहीं होंगी। इसरो का कहना है कि ऑर्बिटर के रूप में चंद्रयान2 का 95 प्रतिशत हिस्सा सही सलामत है, सिर्फ 5 प्रतिशत का नुकसान हुआ है। ऑर्बिटर एक साल तक चंद्रमा की तस्वीरें लेता रहेगा तथा उसका दूरसंवेदी पर्यवेक्षण करता रहेगा। इसरो के प्रमुख के. शिवन का कहना है कि ऑर्बिटर एक साल के निर्धारित कार्यकाल के बजाय सात वर्ष तक भी काम कर सकता है। इस ऑर्बिटर के पास आठ उपकरण हैं जो एक दशक पहले छोड़े गए चंद्रयान-1 के ऑर्बिटर के उपकरणों की तुलना में ज्यादा उन्नत हैं, अतः इनसे बेहतर नतीजे मिलने की उम्मीद है। ऑर्बिटर में एक सिंथेटिक एपर्चर रेडार की बजाय इस बार दो फ्रीक्वेंसी रेडार हैं। इस बार भेजे गए कैमरे भी अधिक रेजोलुशन वाले हैं। ये उपकरण ज्यादा बेहतर नतीजे देने का सामर्थय रखते हैं। चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर अपने माइक्रोवेव डूअल फ्रीक्वेंसी सेंसरों की मदद से चंदमा के उन क्षेत्रों के भी नक्शे तैयार कर सकता है जो स्थायी रूप से छाया में रहते हैं। अंतिम क्षण की विफलता को अलग रख कर हमें इस मिशन के सकारात्मक पहलुओं पर गौर करना चाहिएसो पमख का कहना है कि यदि विभिन्न चरणों के हिसाब से देखा जाए तो चंद्रयान-2 मिशन को विफल नहा कहा जा सकता। उन्हान कहा कि मिशन का लाडग चरण सिर्फ हमारी तकनीकी काबिलियत का प्रदर्शन था और इसमें भी हम काफी हद तक सफल हो गए थेसिवन क अनुसार आबिटर विज्ञान क मामल म हम 100 प्रतिशत सफलता मिली है और लैंडिंग टेक्नोलॉजी के मामले में हम 95 प्रतिशत सफल रहे। विक्रम का साफ्ट लैंडिंग के बजाय हार्ड लैंडिंग हुई। नासा और विदेशी अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने भी चद्रमा पर मिशन भेजने के भारत के तकनीकी सामथ्य और इसरा कवज्ञानिका क प्रयास का सराहना का ह। विशाल जीएसएलवी मार्क-2 राकट के जरिए चंद्रयान-2 मिशन का सफल प्रक्षपण आर चद्रमा का कक्षा में उसका प्रविष्टि को भारत के किफायती अतरिक्ष कार्यक्रम के उदाहरण के रूप में देखा जा रहा है। यह भारत के तकनीकी सामथ्य का भा परिचय देता है। विशेषज्ञों ने इस उपलाब्ध का तुलना एक चलती ट्रेन से दागी जाने वाली गाला स का है, जिसे लाखों किलोमीटर दूर एक दूसरी चलती हुई ट्रेन पर रखे लक्ष्य पर साधा जाता है। चंद्रयान-2 मिशन को अपने कम बजट के लिए जाना जाएगा। इस मिशन पर करीब 14 करोड़ डॉलर का खर्च आया है जबकि अमेरिका न अपन एपाला मिशना पर 100 अरब डालर खच कर दिए थे ।इसरो फिलहाल चंद्रमा की सतह पर निढाल पडे विक्रम लैंडर से संचार संपर्क कायम करने की हरसंभव कोशिश कर रहा है। नासा ने भी विक्रम लैंडर को हैलो मैसेज भेजे हैं। लैंडर से संचार संपर्क स्थापित करने के लिए नासा की जेट प्रोपल्सन लेबोरेटरी (जेपीएल) ने अपने डीप स्पेस नेटवर्क ग्राउंड स्टेशनों के माध्यम से विक्रम को रेडियो फ्रीक्वेंसी बीम भेजी है। नासा के एक अधिकारी ने कहा कि नासा इसरो के साथ हए करार के अनसार अपने डीप स्पेस नेटवर्क (डीएसएन) के जरिए विक्रम के साथ जड़ने की कोशिश कर रहा है। लेकिन जैसे-जैसे दिन गजर रहे हैं, विक्रम के हरकत में आने की संभावनाएं क्षीण होती जा रही हैं। 21 सितंबर के बाद विक्रम को सूरज की धूप मिलनी बंद हो जाएगी। उसके बाद उसके सौर पैनलों को ऊर्जा-संचारित करने की कोई उम्मीद नहीं बचेगी एक खगोल वैज्ञानिक स्कॉट टिल्ली ने इस बात की पष्टि की है कि नासा के कैलिफोर्निया स्थित डीएसएन स्टेशन ने विक्रम को रेडियो फ्रीक्वेंसी तरंग भेजी है। ध्यान रहे कि टिल्ली ने नासा के जासूसी उपग्रह 'इमेज' को खोज निकाला था जो 2005 में गुम हो गया था। लैंडर को संकेत भेजने पर चंद्रमा रेडियो रिफ्लेक्टर की तरह काम करता है और उसका कछ हिस्सा वापस कर देता है जिसे पृथ्वी पर डिटेक्ट किया जा सकता है। नासा भारत के चंदमा मिशन में खास दिलचस्पी रखता है और इसके पीछे कई कारण हैं। पहला यह कि विक्रम के पेलोड में 'लेजर रिफ्लेक्टर अरे' शामिल है, जिसका मकसद लैंडर के सही स्थान को ट्रैक करना तथा पृथ्वी और चंद्रमा के बीच सही दरी को निर्धारित करना था। दरी की गणना से नासा को अपने भावी चंद्र मिशनों की योजना बनाने में मदद मिलती। दूसरा कारण यह है कि नासा को चंद्रयान-2 के उन्नत उपकरणों से बहमल्य डेटा मिलने की उम्मीद है। उसे चंद्रमा के दक्षिणी झव क्षेत्र की 3डी मैपिंग और साफ तस्वीरों का बेसब्री से इंतजार है क्योंकि अमेरिका 2024 में इसी क्षेत्र में अपना मानव मिशन भेजना चाहता है। चीन अपने दो या तीन लैंडर मिशनों के बाद चंद्रमा के दक्षिणी छव में रिसर्च अड़ा बनाने की योजना बना रहा है और इस दौड में अमेरिका पीछे नहीं रहना चाहता इस बीच, इसरो प्रमुख सिवन ने इसरो के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को चंद्रयान-2 मिशन से मिली निराशा से विचलित न होकर भावी मिशनों पर ध्यान केंद्रित करने को कहा है। यह मिशन गगनयान सहित भारत के दसरे मिशनों के लिए भी बहत महत्व रखता है। इसरो और भारतीय वायुसेना ने गगनयान मिशन के लिए तैयारियां भी आरंभ कर दी हैंयह भारत का पहला मानव अंतरिक्ष मिशन होगा. जिसे 2022 में रवाना किया जाएगा। इस उड़ान के लिए अंतरिक्ष यात्रियों के चयन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। 12 टेस्ट पॉयलट्स ने चयन का प्रथम चरण पास कर लिया है वायुसेना ने एक बयान में बताया कि चुने हुए टेस्ट पॉयलट्स के कई तरह के परीक्षण हुए हैं, जिनमें उनका शारीरिक और मनोवैज्ञानिक आकलन तथा रेडियोलॉजिकल और क्लिनिकल जांचें शामिल हैं। गगनयान मिशन में दो उडाने मानवरहित होंगी जबकि एक उडान समानव होगी। मिशन के तहत तीन अंतरिक्ष यात्रियों के दल को सात दिनों के लिए पृथ्वी की निम्न कक्षा में भेजा जाएगा। यदि यह मिशन सफल रहा तो भारत स्वतंत्र रूप से अंतरिक्ष में मानव भेजने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा नासा और विदेशी अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने भी चंद्रमा पर मिशन भजन के भारत के तकनीकी सामर्थय और इसरो का वैज्ञानिकों के प्रयास की सराहना की है। विशाल जीएसएलवी मार्क-2 रॉकेट के जरिए चंद्रयान-21 मिशन का सफल प्रक्षेपण और चंद्रमा की कक्षा में उसकी प्रविष्टि को भारत के किफायती अंतरिक्ष कार्यक्रम के उदाहरण के रूप में देखा जा रहा है यह भारत के तकनीकी सामर्थय का भी परिचय देता है। विशेषज्ञों ने इस उपलब्धि की तुलना एक चलती ट्रेन से दागी जाने वाली गोली से की हैजिसे लाखों किलोमीटर दूर एक दूसरी चलती हुई ट्रेन पर रखे लक्ष्य पर साधा जाता है। चंद्रयान-मिशन को अपने कम बजट के लिए जाना जाएगा
चंद्रयान के बाद अब गगनयान की राह