अब गठबंधन की राजनीति का सहारा

महाराष्ट्र विधानसभा की सियासी जंग के लिए चनावी बिगल बज चका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहस्पतिवार को नासिक में रैली को संबोधित कर महाराष्ट्र विधानसभा चनाव के लिए भाजपा के चनाव अभियान का आगाज कर दिया है। गए भाजपा इस चनाव में भी मोदी के नाम के सहारे मैदान में उतरने जा रही है। हालांकि, भाजपा और उसकी सहयोगी शिवसेना में अभी टिकटों के बंटवारे का पेच फंसा है, लेकिन तय है कि भाजपा और शिवसेना अव गरबंधन के साथ ही चनाव मैदान में जा रहे हैं। दसरी ओर कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के गठबंधन में सीटों का बंटवारा हो चुका है।इस बार की सियासी जंग त्रिकोणीय होने की बजाय भाजपा- शिवसेना और कांग्रेस-एनसपी गठबंधनों के बीच होने जा रही है। 2014 के चुनाव में भाजपा और शिवसेना ने अंतिम समय में अलग- अलग राह पकड़ ली थी, हालांकि चनाव बाद दोनों को एक साथ आना पड़ा। इस बार भी गठबंधन में मुख्यत दो पेच हैं। एक सीटों का बंटवारा और दूसरा मुख्यमंत्री का पद है। शिवसेना इस बार भाजपा के साथ बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने का माग कर रही है। जबकि भाजपा पिछले विधानसभा चुनाव व बात लोकसभा चुनाव के नतीजी क आधार पर अपने हिस्से में ज्यादा सीट चाहता है। भाजपा हर हालत म खुद को शिवसेना से आगे रखने की कोशिश में है। इस गठबंधन में रामदास अठावले की रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (अठावले) भी शामिल है। दरअसल, 2019 के लोकसभा चुनाव के समय भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे की मौजूदगी में दोनों दलों के बीच हुए चुनावी समझौते के समय विधानसभा चुनाव को लेकर भी ऐलान किया गया था। तब मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस के कहा था कि विधानसभा चुनाव में सहयोगी दलों के लिए सीट छोड़ने के बाद बची बाकी सीटों पर भाजपा और शिवसेना बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ेंगी। अब शिवसेना इसी वादे को निभाने की मांग कर रही है। हालांकि लोकसभा चुनाव के बाद हालात बदले हैं, और भाजपा ज्यादा सीटें चाहती है। इसके अलावा शिवसेना चुनाव जीतने पर इस बार मुख्यमंत्री पद बारी-बारी से दोनों दलों के पास रखने की मांग कर रही है। माना जा रहा है कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के पुत्र आदित्य ठाकरे को पार्टी मुख्यमंत्री पद के लिए अपना उम्मीदवार घोषित कर सकती है। अब तक शिवसेना ने कभी भी किसी नेता को मुख्यमंत्री का प्रत्याशी घोषित नहीं किया। ठाकरे परिवार के इतिहास में यह पहली बार होगा जब कोई चुनाव लड़ेगा। आदित्य ठाकरे महाराष्ट्र में जन आशीर्वाद यात्रा पर हैं। हालांकि भाजपा साफ कर चुकी है कि मुख्यमंत्री उसका ही होगा। माना जा रहा है कि चनाव में भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ही चेहरा होंगे। अब इन मसलों को सुलझाने के लिए दोनों दलों के राष्ट्रीय अध्यलों की बैरक टोनी है। कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन में मख्यमंत्री का चेहरा कोई नहीं होगा। दर असल. कांग्रेस और एनसीपी के कई दिग्गजों के पार्टी छोड़ देने के बाद उनमें सर्वमान्य चेहरों की कमी हो गई है। लोकसभा चनाव में करारी शिकस्त के बाद दोनों दलों के कई बड़े नेता भाजपा का दामन थाम चके हैं। महाराष्ट विधान सभा में 288 सीटें हैं। कांग्रेस और एनसीपी में 125- 125 सीटों पर चनाव लड़ने की सहमति हो चुकी है। बाकी सीटें सहयोगियों के लिए छोडी गई हैं। कांग्रेस और एनसीपी के बीच गठबंधन दो दशक पुराना है। दोनों दलों ने पहली बार 2004 के विधानसभा में चुनाव पूर्व गठबंधन किया था। तब कांग्रेस ने 157 और एनसीपी ने 124 सीटों पर चनाव लडा। चुनाव के नतीजे आने पर एनसीपी को कांग्रेस से दो सीटें ज्यादा मिली थीं। लेकिन तब एनसीपी ने कांग्रेस को 'बडा भाई' बताते हए गठबंधन सरकार का मुख्यमंत्री पद कांग्रेस को दे दिया था। प्रदेश के एक अन्य दल राज ठाकरे के महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। बहरहाल, 288 सीटों वाली विधानसभा में 29 अनुसूचित जाति और 25 अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। तब 122 सीटें जीत कर भाजपा सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी थी। जबकि शिवसेना को 62 सीटें मिल पाईं। इसके बाद दोनों ने मिलकर सरकार बनाई। तब कांग्रेस को 42 और राकांपा को 41 सीटें मिली थीं। दिलचस्प बात यह है कि भाजपा ने 2014 के चनाव में शिवसेना से 'बडा भाई' का ओहदा छीन लिया था, जबकि कांग्रेस को अब 'बड़ा भाई' का ओहदा गंवाना पड़ा है। इस साल के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा-शिवसेना गठबंधन को भारी सफलता मिली। इससे भी फडनवीस सरकार के हौसले बुलंद हैं, लेकिन वह कई मामलों में घिरी भी है। मुंबई पर देश में जारी आर्थिक मंदी का असर भी दिख रहा है। इसके अलावा पिछले दिनों मुंबई समेत महाराष्ट के कई इलाके बाढ़ की चपेट में भी रहे। इस चुनाव में विपक्ष अब आर्थिक मंदी. बाढ. किसानों की आत्महत्या जैसे मामलों को चुनावी मुद्दा बनाने में जुट गया है। हालांकि भाजपा-शिवसेना अपनी सरकार की उपलब्धियों के साथ ही 3 तलाक, अनुच्छेद 370 जैसे राष्ट्रीय मामलों को इस चनाव में भी भुनाने में लगे हैं।